Wednesday, June 15, 2011

तेरा नाम लिख रहा हूँ

सुबो-शाम लिख रहा हूँ, तेरा नाम लिख रहा हूँ।
मैं इबारते-मुकद्दस का जाम लिख रहा हूँ॥

ग़ैरों पे करम तेरे, और दिल पे सितम मेरे,
मैं ख़ुद पे आज इसका इल्जाम लिख रहा हूँ।

यूँ भी तेरी जफ़ाई, क्या-क्या न गुल खिलाई?
तेरे वास्ते भी अच्छा सा काम लिख रहा हूँ।

आया हूँ क्यूँ यहाँ पे? और जाऊँगा कहाँ पे?
इस बात से नावाक़िफ़ अंजाम लिख रहा हूँ।

ग़ाफ़िल, बे-होशियारी और बे-तज़ुर्बेकारी,
आल्लाहो-ईसा, साहिब-वो-राम लिख रहा हूँ॥
                                                                     -ग़ाफ़िल

14 comments:

  1. बहुत उम्दा!!

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  2. सर्व धर्म समभाव से ओत-प्रोत विशिष्ट रचना...बधाई

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  3. उत्कृष्ट रचना...बधाई

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  4. ग़ैरों पे करम तेरे, और दिल पे सितम मेरे,
    मैं ख़ुद पे आज इसका इल्जाम लिख रहा हूँ।

    bahut sunder ...
    bahut acche sheron aur bhavon se likhi gayi ghazal

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  5. mai bhi aapko aatho jaam likh raha hoon

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  6. बहुत बढ़िया गजल लिखा है | शुभकामनाएं..

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  7. सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
    शुभ मकर संक्रांति

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  8. आया हूँ क्यूँ यहाँ पे? और जाऊँगा कहाँ पे?
    इस बात से नावाक़िफ़ आराम लिख रहा हूँ।
    ....
    नावाकिफ नहीं हैं जनाब आप ...जब इतना सोंच रहे हैं तो नावाकिफ हरगिज नहीं ...अच्छी गज़ल के लिए मुबारक बाद !

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    1. आप वाक़िफ हों श्रीमन्! आखि़र मैं 'ग़ाफ़िल' ही तो हूँ

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  9. वाह बढ़िया गज़ल..

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  10. आया हूँ क्यूँ यहाँ पे? और जाऊँगा कहाँ पे?
    इस बात से नावाक़िफ़ आराम लिख रहा हूँ।
    वाह ...बहुत ही बढिया।

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  11. वाह, बहुत खूब, गाफिल जी।
    बहुत बढि़या ग़ज़ल।

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