Tuesday, August 16, 2011

एक 'ग़ाफ़िल' से मुलाक़ात याँ पे हो के न हो

यार तेरी वो मुआसात यहाँ हो के न हो।
फिर सुहानी वो हसीं रात यहाँ हो के न हो॥

ऐसी ख़्वाहिश के रहे चाँद भी इन क़दमो में,
आबे- हैवाँ की वो बरसात यहाँ हो के न हो।

अंदलीबों यूँ ख़िज़ाओं में रहो गुम- सुम मत,
फिर बहारों की करामात यहाँ हो के न हो।

मुझ सा नादाँ भी ग़ज़ब ख़ुद को कहे अफलातूँ,
एक ‘ग़ाफ़िल’ से मुलाक़ात यहाँ हो के न हो॥ 

(मुआसात= मिह्रबानी, आबे- हैवाँ= अमृत)

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30 comments:

  1. मुझ सा नादाँ भी यहाँ अफलातूँ से ना कमतर,
    एक 'ग़ाफ़िल' से मुलाक़ात याँ पे हो के न हो॥

    बेहद शानदार लाजवाब गज़ल ।

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  2. लोग अश्क़ों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
    फिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो।

    बेहतरीन ग़ज़ल

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  3. ऐसी ख़्वाहिश के रहे चाँद भी इन क़दमो में,
    आबे- हैवाँ की फिर बरसात याँ पे हो के न हो।

    अति सुन्दर , सराहनीय .

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  4. "ऐसी ख़्वाहिश के रहे चाँद भी इन क़दमो में...."

    वाह! बड़ा उम्दा खयालात पेश किये हैं आपने....
    बेहतरीन...

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  5. अति सुन्दर..........बेहतरीन ग़ज़ल

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  6. लोग अश्क़ों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
    फिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो

    खूबसूरत गजल. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  7. वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ..आभार ।

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  8. बहुत उम्दा गज़ल है .. नए अंदाज़ के शेर ...

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  9. बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..

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  10. bahut sundar panktiyan sir....

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  11. भाई गाफिल जी
    बहुत-बहुत आभार ||

    एक स्थान पर खिले-कमल के
    चक्कर में कीचड़ में फंसा ||

    एक कदम पर बड़ी फिसलन तो
    दूसरे कदम पर जकड़न है,
    इतनी जोर से दबोचे गए कि ---

    जय बाबा भोले नाथ |

    अंदलीबों = ??

    बहुत बहुत बधाई ||

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  12. वाह ,बहुत खूब.

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  13. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने ग़ाफिल जी!
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  14. बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..

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  15. लोग अश्क़ों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
    फिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो//
    बहुत खूब

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  16. आपकी लिखी गजलों की बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ।

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  17. लोग अश्क़ों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
    फिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो।

    बेहतरीन गज़ल.

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  18. अच्छी प्रस्तुति...बधाई...।
    मानी

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  19. बहुत ही सुन्दर
    बेहतरीन गजल...

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  20. लोग अश्क़ों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
    फिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो।
    बहुत खूब!

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  21. बहुत सुन्दर सार्थक रचना.

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  22. खूबसूरत गज़ल है गाफिल जी ! यह अच्छा है मुश्किल शब्दों के अर्थ आप साथ में लिख देते हैं, समझाने में आसानी हो जाती है !

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  23. गजल समर्पित हो गयी
    जब रविकर के नाम
    हिचकोले जरूर खिलायेगा
    देखिये क्या लिखता है
    लिखा हुआ उसका
    सामने तो आयेगा
    गाफिल की शानदार गजल
    पर एक और कसीदा पक्का
    वो आ आकर जड़ जायेगा ।

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  24. लोग अश्कों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
    फिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो।

    शानदार ग़ज़ल है !!
    बहुत खूब, गाफिल जी।

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  25. ग़ाफ़िल दानिशमन्द है, शायर है उस्ताद।
    चेला हमें बनाइए, करते हैं फरियाद।।

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  26. अपने हुजूर में कुछ कहने की इजाजत दे दो,
    मैंने कब कोई शायरी का खिताब माँगा था,,,,,,,

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