Wednesday, December 12, 2012

सोचना रोटी है आसाँ

सोचना रोटी है आसाँ पर बनाना है जटिल
ख़ूबसूरत राग है पर यह तराना है जटिल

क्या यही लगता है रोटी आज दे दोगे उसे
इस क़दर बेकस व बेबस फिर न देखोगे उसे

उसके हक़ में है कि यह त्रासद अवस्था झेल ले
हौसला दो राह के पत्थर को ख़ुद ही ठेल ले

यार ग़ाफ़िल! एक मौका भर उसे अब चाहिए
रोटियाँ ख़ुद गढ़ सके ऐसा उसे ढब चाहिए

-‘ग़ाफ़िल’

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7 comments:

  1. रोटी में भाव और विचार बढ़िया ढंग से अभिव्यक्त हुए हैं .

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  2. सोचना रोटी है आसाँ पर बनाना है जटिल,
    ख़ूबसूरत राग है पर यह तराना है जटिल।

    सत्य कहा ....
    सुंदर रचना ....
    शुभकामनायें ....

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  3. यार ग़ाफ़िल! हौसला, मौक़ा उसे अब चाहि,
    रोटी नहीं रोटी बनाने का उसे ढब चाहिए।

    ...बिल्कुल सच...बहुत सुन्दर रचना..

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  4. यार ग़ाफ़िल! हौसला, मौक़ा उसे अब चाहिए,
    रोटियाँ ख़ुद गढ़ सके ऐसा उसे ढब चाहिए।

    वाह ..थोड़े से शब्दों में कितना सच्च कह दिया हैं आपने ...
    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है बेतुकी खुशियाँ

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  5. क्या कहूँ निशब्द करती रचना

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  6. सत्य की अनोखी तस्वीर दिखाती लाजवाब प्रस्तुति
    RECENT POST चाह है उसकी मुझे पागल बनाये

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