सोचना रोटी है आसाँ पर बनाना है जटिल
ख़ूबसूरत राग है पर यह तराना है जटिल
क्या यही लगता है रोटी आज दे दोगे उसे
इस क़दर बेकस व बेबस फिर न देखोगे उसे
उसके हक़ में है कि यह त्रासद अवस्था झेल ले
हौसला दो राह के पत्थर को ख़ुद ही ठेल ले
यार ग़ाफ़िल! एक मौका भर उसे अब चाहिए
रोटियाँ ख़ुद गढ़ सके ऐसा उसे ढब चाहिए
-‘ग़ाफ़िल’
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
रोटी में भाव और विचार बढ़िया ढंग से अभिव्यक्त हुए हैं .
ReplyDeleteसोचना रोटी है आसाँ पर बनाना है जटिल,
ReplyDeleteख़ूबसूरत राग है पर यह तराना है जटिल।
सत्य कहा ....
सुंदर रचना ....
शुभकामनायें ....
यार ग़ाफ़िल! हौसला, मौक़ा उसे अब चाहि,
ReplyDeleteरोटी नहीं रोटी बनाने का उसे ढब चाहिए।
...बिल्कुल सच...बहुत सुन्दर रचना..
यार ग़ाफ़िल! हौसला, मौक़ा उसे अब चाहिए,
ReplyDeleteरोटियाँ ख़ुद गढ़ सके ऐसा उसे ढब चाहिए।
वाह ..थोड़े से शब्दों में कितना सच्च कह दिया हैं आपने ...
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है बेतुकी खुशियाँ
बहुत खूब बढिया गजल , बधाई।
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा
क्या कहूँ निशब्द करती रचना
ReplyDeleteसत्य की अनोखी तस्वीर दिखाती लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteRECENT POST चाह है उसकी मुझे पागल बनाये