Friday, March 22, 2013

अपलक

रात
सड़क के किनारे
चिल्लाती रही
वह लहूलुहान
गुज़र रही थी
एक बारात
बैण्डबाजे के शोर में
डूब गयी
उसकी आवाज़
सुबह
सड़क के किनारे
पाई गयी
जमे ख़ून में लिपटी
एक लाश
भीड़ को घूरती
अपलक।

-‘ग़ाफ़िल’

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