Friday, May 10, 2013

भ्रमित, स्तब्ध

आज
चला गया सहसा
अपने पार्श्व अवस्थित कमरे में
जो
मेरी जी से भी प्यारी राजदुलारी का है
जिसे
मैंने कल ही तो बिदा किया है
भ्रमित, स्तब्ध
देखता रहा मैं
सब रो रहे हैं धार-धार
कमरे के दरो-दीवार,
पलंग, बिस्तर, आदमकद आईना
या कि मेरी आँखें

कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.

10 comments:

  1. भ्रमित नहीं हों ,आपकी आँखें आपकी दिल की बात बता रही है
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post'वनफूल'
    latest postअनुभूति : क्षणिकाएं

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  2. मैंने कल ही तो बिदा किया है
    भ्रमित, स्तब्ध
    देखता रहा मैं
    सब रो रहे हैं धार-धार
    कमरे के दरो-दीवार,
    पलंग, बिस्तर, आदमकद आईना
    या कि मेरी आँखें

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (11-05-2013) क्योंकि मैं स्त्री थी ( चर्चा मंच- 1241) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण रचना,आभार आदरणीय.

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  5. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 12/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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  6. महसूस होती रचना ..शानदार शब्द चित्र ..सादर बधाई के साथ

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  7. बेटी की बिदाई का दर्द महसूस कर रही हूँ ....सादर

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  8. bhaavpoorn ... betiyon ki bidaai assan nahi hoti ...

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  9. Bahut hi gambhir rachana .....mai to jan hi nahi paaya ....

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