Tuesday, December 27, 2016

ख़ूबसूरत शै को अक़्सर देखिए

मेरा दिल है आपका घर देखिए
जी न चाहे फिर भी आकर देखिए

आप हैं, मैं हूँ, नहीं कोई है और
क्या मज़ा हाेे ऐसे भी गर देखिए

देखते रहने से बढ़ जाती है शान
ख़ूबसूरत शै को अक़्सर देखिए

मेरी तो हर ख़ामियाँ बतला दीं, अब
वक़्त हो तो ख़ुद के अन्दर देखिए

मैं दिखाता हूँ अब अपना हौसला
जैसा देखा उससे बेहतर देखिए

हुस्न बेपर्दा हुआ तो लुत्फ़ क्या
नीम पर्दा उसके तेवर देखिए

माना ग़ाफ़िल लौटकर आएँगे आप
रस्म है, फिर भी पलटकर देखिए

-‘ग़ाफ़िल’

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-12-2016) को "छोटी सोच वालों का एक बड़ा गिरोह" (चर्चामंच 2570) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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