Tuesday, May 29, 2018

कभी नाज से मुस्कुराकर तो देखो

हुनर यह कभी आज़माकर तो देखो
दिलों में ठिकाना बनाकर तो देखो

नहीं फिर सताएगी तन्हाई-ए-शब
किसी के भी ख़्वाबों में जाकर तो देखो

उठा लेगा तुमको ज़माना सर आँखों
तुम इक भी गिरे को उठाकर तो देखो

न बह जाए उसमें ये दुनिया तो कहना
तबीयत से आँसू बहाकर तो देखो

रहेंगे न तुमसे फिर अफ़्राद ग़ाफ़िल
कभी नाज से मुस्कुराकर तो देखो

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, May 16, 2018

जो कुछ भी बरसे मेरे यहाँ बेहिसाब बरसे

जनाब की अंजुमन में कुछ पल गुलाब बरसे
पता नहीं क्यूँ बुरी तरह फिर जनाब बरसे

हो तेरी नफ़्रत के मेरे मौला हो तेरी रहमत
जो कुछ भी बरसे मेरे यहाँ बेहिसाब बरसे

कभी तो ऐसा भी हो के मुझ पर तेरी नज़र हो
मगर न आँखों से तेरी उस दम अज़ाब बरसे

हसीं दिलों की पनाह मुझको हुई मयस्सर
फ़लक़ से यारो अब आग बरसे के आब बरसे

न पा सकेगी मक़ाम ग़ाफ़िल तेरी ये हसरत
के कुछ किए बिन ही तेरे बाबत सवाब बरसे

-‘ग़ाफ़िल’

Monday, May 14, 2018

तेरी तर्ज़े बयानी का हूँ क़ाइल

कहाँ मैं लंतरानी का हूँ क़ाइल
तेरी तर्ज़े बयानी का हूँ क़ाइल
तुझे मालूम हो ग़ाफ़िल मैं तेरी
बला की बेज़ुबानी का हूँ क़ाइल

-‘ग़ाफ़िल’

Thursday, May 10, 2018

किए बिन इत्तिला दिल में जो आएगा बुरा होगा

भले रुस्वा करे मुझको मगर तुझको पता होगा
के मेरे बाद शह्रे हुस्न में क्या क्या हुआ होगा

नहीं गो याद है लेकिन यक़ीं इतना तो है ख़ुद पर
अगर वह ख़ूबसूरत है तो फिर मुझसे मिला होगा

है आया कौन यह मालूम होना चाहिए आख़िर!
किए बिन इत्तिला दिल में जो आएगा बुरा होगा

न कर पाये मुझे सन्नाम तो बदनाम ही कर दे
सुक़ून आ जाएगा चर्चा मेरे जब नाम का होगा

तसव्‍वुर में मेरे इतनी दफा आना पड़ा तुझको
मुझे मालूम है इस बात से ही तू ख़फ़ा होगा

कोई मेरी निगाहों से ज़रा दुनिया को तो देखे
ये दुनिया जल रही होगी वो ग़ाफि़ल हो रहा होगा

-‘ग़ाफ़िल’

Sunday, May 06, 2018

फरेबियों के नगर दोस्त मत मगर जाओ

न यह कहूँगा के उल्फ़त में यार मर जाओ
मगर किसी से मुहब्बत हुज़ूर कर जाओ

इधर है हुस्नो शबाब और उधर रब जाने
ये है तुम्हीं पे इधर आओ या उधर जाओ

फ़क़त तुम्हीं से है बाकी उमीद अश्क अपनी
ज़रा ही वक़्त को पर आखों में ठहर जाओ

करूँ तुम्हें मैं ख़बरदार यह न ठीक लगे
फरेबियों के नगर दोस्त मत मगर जाओ

हाँ वो जो इश्क़ में ग़ाफ़िल किए हो वादे तमाम
अगर ख़ुशी हो तुम्हें शौक से मुकर जाओ

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, May 02, 2018

तेरे जैसा ज़माने में कोई दूजा नहीं है पर

रक़ीबों पर करम तेरा मुझे शिक़्वा नहीं है पर
समझ ले तू के यह तारीफ़ है ऐसा नहीं है पर
कई दिलदार हैं यह बात सच तो है ओ जाने जाँ
तेरे जैसा ज़माने में कोई दूजा नहीं है पर

-‘ग़ाफ़िल’

Tuesday, May 01, 2018

तेरे ही सबब पार्साई गई है

भले ही वो पर्दे में लाई गई है
यहाँ भी मगर बात आई गई है

तुझे चाहने वाले होंगे कई पर
फ़क़त जेब अपनी सफ़ाई गई है

ग़ज़ल तुझको अपना बनाने की ज़िद में
ही अपनी पढ़ाई लिखाई गई है

न माने तू पर सच यही है के अपनी
तेरे ही सबब पार्साई गई है

सुनाते हो ऐसे ग़ज़ल आज ग़ाफ़िल
के जैसे ये पहले सुनाई गई है

-‘ग़ाफ़िल’

(पार्साई=संयम, इंद्रिय-निग्रह, पर्हेज़गारी)