Monday, April 29, 2019

हुज़ूर इस बार कैसा वार होगा

शबो रोज़ इल्म का व्यापार होगा
तो कब उल्फ़त का कारोबार होगा

एक क़त्अ-

मुझे लगता है शायद मेरा जीना
अब आगे और भी दुश्वार होगा
चलाकर वो नज़र का तीर मुझपर
कहे जाते हैं यूँ ही प्यार होगा

चला था तीर आगे नीमकश पर
हुज़ूर इस बार कैसा वार होगा

हर इक चलता रहे गर लीक पर ही
तमाशा ख़ाक मेरे यार होगा

अगर ग़ाफ़िल मुसन्निफ़ हो गए सब
ज़माना शर्तिया लाचार होगा

-‘ग़ाफ़िल’

Saturday, April 27, 2019

हर कोई बेगाना है

बातें ज़ेह्न की हों के जिगर की लुत्फ़ हो जिसमें पूछो सब
इस दुनिया से उस दुनिया तक अपना आना जाना है
जी कुछ और तो दस्तो पा करते रहते हैं और ही कुछ
ग़ाफ़िल जी ऐसे भी जो देखो हर कोई बेगाना है

-‘ग़ाफ़िल’

Monday, April 22, 2019

बस तुझसे कभी प्यार का चर्चा नहीं होता

इश्क़ इस भी क़दर दोस्तो रुस्वा नहीं होता
आँखों पे ज़माने के जो पर्दा नहीं होता

दुनिया से हम उश्शाक़ जो पा जाते हक़ अपने
होता तो बहुत कुछ हाँ तमाशा नहीं होता

आया था तो कर लेता हमेशा के लिए घर
इक बार भी या दिल में तू आया नहीं होता

हो जाती हैं वर्ना तो हर इक तर्ह की बातें
बस तुझसे कभी प्यार का चर्चा नहीं होता

मिल जाता जो धोखे से ही ग़ाफ़िल से कभी तू
दावा है के फिर देखता क्या क्या नहीं होता

-‘ग़ाफ़िल’

Thursday, April 18, 2019

बयाँ हो चश्म से जो बन्दगी है

भले तू कह के ये आवारगी है
रवानी है अगर तो ही नदी है

हुज़ूर अपनी भी जानिब ग़ौर करिए
इधर भी तो बहारे ज़िन्दगी है

यही तो वक़्त की है ख़ासियत अब
कभी जो था ग़लत वो सब सही है

ज़माने की हसीं चिकनी सड़क पर
न फिसले जो वो कैसा आदमी है

ज़ुबाँ से हो बयाँ है बात भर वो
बयाँ हो चश्म से जो बन्दगी है

है क्या तू भी समन्दर कोई ग़ाफ़िल
जो तेरी इस क़दर तिश्नालबी है

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, April 17, 2019

कुछ ऐसी बात फ़ानी कह रहा है

इन अब्रों की ज़बानी कह रहा है
ये चाँद अपनी कहानी कह रहा है
मिटेगी प्यास तेरी भी ज़मीं अब
कुछ ऐसी बात फ़ानी कह रहा है

-‘ग़ाफ़िल’

Saturday, April 13, 2019

आप ही का

साहिल हैं आपके ही दर्या है आप ही का
सैलाबो मौज सारा जलसा है आप ही का

मेरा के आपका है ये है सवाल ही क्यूँ
हूँ मैं जब आपका तो मेरा है आप ही का

कैसे लगाई आतिश कितने जलाए जज़्बे
जो सुन रहे हो मुझसे किस्सा है आप ही का

कर लीजिए गुलाबी कालिख के पोत लीजे
हैं रंग आपके ही चेहरा है आप ही का

रुस्वाइयों से आख़िर ग़ाफ़िल जी उज़्र क्यूँ है
चर्चा भी तो ज़ियादः होता है आप ही का

-‘ग़ाफ़िल’

Monday, April 08, 2019

बात में कुछ तो लहर पैदा कर

होए कैसे भी मगर पैदा कर
तीरगी से तू सहर पैदा कर

क्या कही, बात कही सीधे से जो
बात में कुछ तो लहर पैदा कर

लुत्फ़ आएगा जवाँ होगा वो जब
जी में उल्फ़त का शरर पैदा कर

जिससे, बेबस सी तमन्ना-ए-इश्क़
कर ले परवाज़ वो पर पैदा कर

तो फ़ना होगा असर ज़ह्रों का
ज़ह्र तू भी कुछ अगर पैदा कर

क्या है जुम्बिश ही फ़क़त पावों की
बाबते जी भी सफ़र पैदा कर

ज़िन्दगी जोड़-घटाना ही नहीं
ग़ाफ़िल इक भाव-नगर पैदा कर

-‘ग़ाफ़िल’