Tuesday, November 19, 2019

ये ज़िन्दगी

नाच गर आए न तो आँगन को टेढ़ा क्यूँ कहें
क्यूँ कहें तलवार की सी धार है ये ज़िन्दगी
देखिए तो ज़िन्दगी बस चार दिन का खेल है
सोचिए तो जिस्म के भी पार है ये ज़िन्दगी

-‘ग़ाफ़िल’

Saturday, November 16, 2019

जिसे आँख भर देखते हो

जिगर देखते हो यक़ीनन
मेरे सिम्त अगर देखते हो
ज़रा ग़ुफ़्तगू भी हो उससे
जिसे आँख भर देखते हो

-‘ग़ाफ़िल’

Thursday, November 07, 2019

सीने के आर पार है के नहीं

जी में थोड़ा ग़ुबार है के नहीं
यानी अब ऐतबार है के नहीं

रात ढलती है शम्स उगता है
आदमी ख़ुशगवार है के नहीं

शब की लज़्ज़त भी जान लोगे सुब
देख लेना ख़ुमार है के नहीं

कोई भी तौर नाम अपना रक़ीब
उसके ख़त में शुमार है के नहीं

और ग़ाफ़िल जी! तीर नज़रों का
सीने के आर पार है के नहीं

-‘ग़ाफ़िल’