Wednesday, January 29, 2020

अपने देखे भाले कौन

कौए से बोली कोयल
तुम गोरे तो काले कौन
तुम्हें भी जान न पाऊँ तो
अपने देखे भाले कौन

-‘ग़ाफ़िल’

Monday, January 27, 2020

तेरे पास ग़ाफ़िल वो शाना कहाँ है

वे लोग उनका आबाद ख़ाना कहाँ है
न पूछ आज बीता ज़माना कहाँ है

जो पाया उसे खोना आसान है पर
जो खोया उसे फिर से पाना कहाँ है

थी आगे मेरी अंजुमन तेरी मंज़िल
मगर अब तेरा आना जाना कहाँ है

मैं उठ तो रहा आस्ताँ से तेरे अब
इधर क्या पता आबोदाना कहाँ है

एक क़त्आ-

वो गर्मी की रात उस ज़माने की, छत का
फ़लक़ वाला वो शामियाना कहाँ है?
वो तारों को गिनने के बेजा बहाने
कनअँखियों का दिलक़श निशाना कहाँ है

न कर ये उठा ले जो ग़म हर किसी का
तेरे पास ग़ाफ़िल वो शाना कहाँ है

-‘ग़ाफ़िल’
(चित्र गूगल सेे साभार)

Saturday, January 25, 2020

ग़म थे जो रक़म हुए

आदाब दोस्तो!

क्या करें भी याद कर यह के दौरे इश्क़ में
हमपे क्या सितम हुए और क्या क़रम हुए
बस उसी ही नाज़ से आज भी रहे सता
हिज्र वाली रात में ग़म थे जो रक़म हुए

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, January 22, 2020

आगे जी में थी अब तो जी पर है

गोया इल्ज़ाम क़त्ल का सर है
मेरे हिस्से में आबरू पर है

हैं सभी दिल से मेरे वाबस्ता
कोई अन्दर तो कोई बाहर है

इश्क़ अगर है तो यह भरम ही क्यूँ
के जो जीता वही सिकन्दर है

मुस्कुराऊँ भी तो कहा जाए
तेरी ग़ल्ती यहाँ सरासर है

ग़ाफ़िल उल्फ़त का ज़िक़्र ही मत कर
आगे जी में थी अब तो जी पर है

-‘ग़ाफ़िल’

Sunday, January 19, 2020

मेरी तन्हाईयों का होता है सौदा अक़्सर

मेरा लहज़ा तो रहा सीधा व सादा अक़्सर
जाने क्यूँ लोग समझ लेते हैं पर क्या अक्सर

कोई क्या मुझको ख़रीदेगा मगर ये तो है
मेरी तन्हाईयों का होता है सौदा अक़्सर

जिस्म के पुर्ज़ों की आवारगी भी देखी है
जब जिसे होना जहाँ था वो नहीं था अक़्सर

यूँ नज़ारे तो हमेशा थे किए सर ऊँचा
मैंने नज़रों को ही झुकती हुई देखा अक़्सर

चाँद हो या न हो ग़ाफ़िल को गरज़ क्या आख़िर
रात भर ढूँढना पड़ता है उजाला अक़्सर

-‘ग़ाफ़िल’

Monday, January 13, 2020

ग़ाफ़िल जी बादलों के भला पार कौन है

मत पूछिए के इश्क़ में लाचार कौन है
यह देखिए के अस्ल गुनहगार कौन है

गोया के चारसू है गुलों की जमात पर
चुभता है मेरे जी में वो जो ख़ार, कौन है

अब तक न जान पाया के दर्या-ए-इश्क़ में
मुझको डुबा दिया जो मेरा यार, कौन है

होता है इश्क़ ख़ुश हो जब अपना दिलो दिमाग़
उल्फ़त के कारोबार में बीमार कौन है

दिखता नहीं है वैसे जो महसूस हो रहा
ग़ाफ़िल जी बादलों के भला पार कौन है

-‘ग़ाफ़िल’

Saturday, January 11, 2020

शायद

दो शे’र-

गुफ़्तगू हो भी अगर तो कैसे
हर कोई ऊब गया है शायद

आह ये ख़ुश्बू! इसी राह से ही
मेरा महबूब गया है शायद

-‘ग़ाफ़िल’