Wednesday, February 12, 2020

गाँव का बूढ़ा वो पीपल का शजर आता है

बाबते ज़िक़्र ही सच है के वो घर आता है
किसके कोठे पे भला रोज़ क़मर आता है

करता रहता है वो एहसान सभी पर बेशक
उसको एहसान जताना भी मगर आता है

वक़्त के पार चले जाते हैं वे लोग अक़्सर
जिनको थोड़ा सा भी जीने का हुनर आता है

बेवफ़ाई का गिला मुझको भला क्यूँ हो जब
वह तसव्वुर में मेरे शामो सहर आता है

झूठे ही हैं वो जो भी क़त्ल का इल्ज़ाम अपने
कहते रहते हैं के बस उनके ही सर आता है

दर्दे उल्फ़त से है आँखों में ये सैलाब ओफ्फो!!
मैं भी देखूँगा उसे मुझ तक अगर आता है

पेड़ भी चलते हैं ग़ाफ़िल जी! मेरे ख़्वाबों में
गाँव का बूढ़ा वो पीपल का शजर आता है

-‘ग़ाफ़िल’

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