Wednesday, May 20, 2020

बीच रस्ते मील का पत्थर पुराना आ गया

हाँ मुझे बातें बनाना मैंने माना आ गया
उसको भी तो तानों का थप्पड़ चलाना आ गया

शम्स की ताबानी का फ़िक़्र अब नहीं है मुझको फिर
गाँव के बरगद का सर पे शामियाना आ गया

क़ाश! मेरे सर पे भी होता कोई ग़म का पहाड़
हर तरफ़ ग़मख़्वार हैं ऐसा ज़माना आ गया

दूर बिल्कुल भी नहीं थी मंज़िल अबके हाय पर
बीच रस्ते मील का पत्थर पुराना आ गया

है रुआबे पा के उसपर झुक रहे सर ख़ुद-ब-ख़ुद
झूठ है ग़ाफ़िल के तुझको सर झुकाना आ गया

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, May 13, 2020

कुछ तो न पाया सब कुछ पाकर लगता है

लगना नहीं चाहिए था पर लगता है
इश्क़ अदावत से भी बदतर लगता है

सोकर देखे जाने वाले से ज़्यादा
सपना जगे ही देख तू, बेहतर लगता है

हूँ क़तील मैं ही और अब इल्ज़ाम इसका
आने को है मेरे ही सर, लगता है

मैं भी कह देता हूँ मैंने वफ़ा न की
तुझको जानम ऐसा ही गर लगता है

तूने जीती दुनिया मैंने प्यार उसका
बोल के तुझको कौन सिकन्दर लगता है

कोई सहारा हो न अगर तो ऐसे में
रस्ते का पत्थर भी रहबर लगता है

इस दुनिया की यही रीति है ग़ाफ़िल जी
कुछ तो न पाया सब कुछ पाकर लगता है

-‘ग़ाफ़िल’

Monday, May 11, 2020

हुज़ूर आपके आने से जी बहलता है

ये सच है आपके ताने से जी बहलता है
मेरा किसी भी बहाने से जी बहलता है

नहीं कहूँ गर इसे इश्क़ तो कहूँ क्या जब
कोई भी तौर सताने से जी बहलता है

मैं शाद हूँ के नहीं छोड़िए इसे हाँ मगर
हुज़ूर आपके आने से जी बहलता है

तमाम होंगे सताए हुए ज़माने के
मैं हूँ के जिसका ज़माने से जी बहलता है

नया है जो जो उसे ग़ाफ़िल और जाँच परख
है तज़्रिबा के पुराने से जी बहलता है

-‘ग़ाफ़िल’

Sunday, May 10, 2020

क्यूँ कहूँ मैं के भला आप तो आते रहिए

कौन कहता है के ता’उम्र किसी के रहिए
हाँ ज़ुरूरी है मगर यह भी के अपने रहिए

दुख की घड़ियाँ ही बताती हैं के सुख चैन के वक़्त
आप सब लोग सुलह-साट से कैसे रहिए

ठौर ये यूँ भी नहीं है के रहें हरदम आप
इक नया ठौर कोई और तलाशे रहिए

अंजुमन आपकी है लुत्फ़ भी है आपका ही
क्यूँ कहूँ मैं के भला आप तो आते रहिए

वार होना ही है जो मौका मिला ग़ाफ़िल जी!
हुस्न वालों से तो हरहाल सँभलते रहिए

-‘ग़ाफ़िल’