Saturday, November 28, 2020

ऐसे वो शायद इंतकाम लिया

हाँ लिया और सहरो शाम लिया
पर न बोलूँगा मैंने जाम लिया

जो के आता था मेरे ख़्वाबों में रोज़
ऐसे वो शायद इंतकाम लिया

लेना था जी से जेह्न से लेकिन
क़त्ल में मेरे फिर वो काम लिया

शायद इससे ही है ख़फ़ा रब जो
मैंने नाम उसका सुब्हो शाम लिया

ग़ाफ़िल उल्फ़त का रोग तुझको था और
लुत्‍फ़ उसने भी बेलगाम लिया

-‘ग़ाफ़िल’

Sunday, November 22, 2020

कोई तकलीफ़ में आ जाए हम ऐसा नहीं करते

कहा जाए हमें जैसा भले वैसा नहीं करते
मगर करने पे ही आ जाएँ तो क्या क्या नहीं करते

हुआ क़ानून ये क्या इश्क़ फ़र्माना बुरा है क्या
नहीं अच्छा है यह कहना के हम अच्छा नहीं करते

हमारी कोशिशों से हर कोई ख़ुश हो न हो लेकिन
कोई तकलीफ़ में आ जाए हम ऐसा नहीं करते

कोई सूरत हमारे जी में आ जाते हो वैसे फिर
ये कहना क्या के हम तेरी गली आया नहीं करते

भले ग़ाफ़िल हों हम लेकिन हमारे जेह्नो दिल गुर्दे
हो कोई वक़्त अपने काम का हर्ज़ा नहीं करते

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, November 04, 2020

न हो गर आईना सूरत कभी अपनी नहीं दिखती

हैं कहते लोग अब वो तेरी गुस्ताख़ी नहीं दिखती
कहें कैसे हम उनसे यह के हमको भी नहीं दिखती

हमारा क़त्ल करने वाला हमको दिख तो जाता है
मगर नज़रों की थी जो अब वो जासूसी नहीं दिखती

न जाने क्या हुआ है आजकल सारे नज़ारों को
तबीयत है हमारी जैसी वो वैसी नहीं दिखती

हमारी याद अपने साथ रक्खो फ़ाइदा होगा
न हो गर आईना सूरत कभी अपनी नहीं दिखती

भरम होता था ग़ाफ़िल यह के क्या रक्खें किसे छोड़ें
चमन में ख़ुश्बुओं की तब सी रा’नाई नहीं दिखती

-‘ग़ाफ़िल’