Thursday, September 16, 2021

ता'फ़लक़ पर उड़ान है अपनी (2122 1212 22)

आशिक़ी में तो शान है अपनी
हाँ पर आफ़त में जान है अपनी

लोग सुध-बुध गँवा भी सकते हैं
ऐसी तान ऐ जहान है अपनी

पंख हैं पंखुड़ी गुलाब अपने
ता'फ़लक़ पर उड़ान है अपनी

आप लोहा हैं तो नज़र आएँ
आँख पारस की खान है अपनी

होगी दरकार आपको भी कुछ
एक दिल की दूकान है अपनी

जी ज़रर में है गा रहे हैं ग़ज़ल
यूँ भी हस्ती महान है अपनी

राहे उल्फ़त है ग़ाफ़िल और उस पर
जानलेवा थकान है अपनी

-‘ग़ाफ़िल’

Thursday, September 02, 2021

हवा भी ऐसी जो ले ग़र्द-ओ-ग़ुबार चले (1212 1122 1212 22)

चले न तीरे नज़र जब न बेशुमार चले
हमारी सिम्त चले गर तो बार-बार चले

जिसे था आना न आया वो जाने इस बाबत
हम इंतज़ार में ये ज़िन्दगी गुज़ार चले

हुज़ूर साँस भी लूँ क्या हवा के झोंके हैं
हवा भी ऐसी जो ले ग़र्द-ओ-ग़ुबार चले

हम ऐसे हैं के तग़ाफ़ुल न कर सकेंगे कभी
वो कैसे थे के हमें करके दरकिनार चले

न सोगवार हों आप इश्क़ तो हुआ ग़ाफ़िल
भले ही प्यार की बाजी हुज़ूर हार चले

-‘ग़ाफ़िल’