tag:blogger.com,1999:blog-896228216551456906.post3523884808513056678..comments2024-03-08T07:10:36.846+05:30Comments on अंदाज़े ग़ाफ़िल: हमें काँटों भरी राहों पे चलना भी ज़ुरूरी थाचन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’http://www.blogger.com/profile/01920903528978970291noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-896228216551456906.post-89155958574326155812015-09-11T10:55:20.061+05:302015-09-11T10:55:20.061+05:30शुक्रिया आदरणीय सक्सेना जीशुक्रिया आदरणीय सक्सेना जीचन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’https://www.blogger.com/profile/01920903528978970291noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-896228216551456906.post-14551202191029317012015-09-11T10:54:39.668+05:302015-09-11T10:54:39.668+05:30आभार राजेन्द्र जीआभार राजेन्द्र जीचन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’https://www.blogger.com/profile/01920903528978970291noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-896228216551456906.post-79011932162502155222015-08-14T10:24:44.380+05:302015-08-14T10:24:44.380+05:30 किसी की शोख़ियों ने क्या ग़ज़ब का क़ह्र बरपाया
ज़रर हो... किसी की शोख़ियों ने क्या ग़ज़ब का क़ह्र बरपाया<br />ज़रर होने से पहले ही सँभलना भी ज़ुरूरी था<br /><br />ये तन्हाई हमारी पूछती रहती है अक्सर के<br />जो अब तक साथ थे क्या उनका टलना भी ज़ुरूरी था<br />बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्तिAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/18391630430260559342noreply@blogger.com