क्या कहूँ दिल्लगी हो गई
मेरी शब और की हो गई
जाएगी किस तरफ़ क्या पता
ज़िन्दगी सिरफिरी हो गई
क्या करोगे भला दोस्त जब
बात ही लिजलिजी हो गई
वक़्त का ही करिश्मा है जो
मिस्ले नाली नदी हो गई
ये ले ग़ाफिल तेरी भी ग़ज़ल
कुछ जली, कुछ बुझी, हो गई
-‘ग़ाफ़िल’
मेरी शब और की हो गई
जाएगी किस तरफ़ क्या पता
ज़िन्दगी सिरफिरी हो गई
क्या करोगे भला दोस्त जब
बात ही लिजलिजी हो गई
वक़्त का ही करिश्मा है जो
मिस्ले नाली नदी हो गई
ये ले ग़ाफिल तेरी भी ग़ज़ल
कुछ जली, कुछ बुझी, हो गई
-‘ग़ाफ़िल’
No comments:
Post a Comment