फिर क़यामत के प्यार लिख डाला।
और फिर ऐतबार लिख डाला।।
लिखना चाहा उसे जभी दुश्मन,
न पता कैसे यार लिख डाला।
उसने क़ातिल निगाह फिर डाली,
उसको फिर ग़मगुसार लिख डाला।
याद आती न अब उसे मेरी,
मैंने तो यादगार लिख डाला।
लिखते लिखते न लिख सका कुछ तो,
तंग आ करके दार लिख डाला।
मैं हूँ ग़ाफ़िल यूँ ग़फ़लतन ये ग़ज़ल,
देखिए क़िस्तवार लिख डाला।।
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
और फिर ऐतबार लिख डाला।।
लिखना चाहा उसे जभी दुश्मन,
न पता कैसे यार लिख डाला।
उसने क़ातिल निगाह फिर डाली,
उसको फिर ग़मगुसार लिख डाला।
याद आती न अब उसे मेरी,
मैंने तो यादगार लिख डाला।
लिखते लिखते न लिख सका कुछ तो,
तंग आ करके दार लिख डाला।
मैं हूँ ग़ाफ़िल यूँ ग़फ़लतन ये ग़ज़ल,
देखिए क़िस्तवार लिख डाला।।
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