करे न इश्क़ मुझे गर वो तो मना कर दे
कोई तो होगा जो नफ़्रत सही पर आकर दे
न यह कहूँगा के वो है तो है वज़ूद मेरा
न यह कहूँगा के बाबत मेरी वो क्या कर दे
ख़ुदा की हद है के रच देगा कोई कोह-ए-संग
इधर है इंसाँ जो पत्थर भी देवता कर दे
हवा में ख़ुश्बू है जी भी है बाग़ बाग़ मेरा
मुझे क़ुबूल हैं ताने वो मुस्कुराकर दे
अजीब दौर है ग़ाफ़िल जी क्या करे कोई
न जाने कौन वफ़ादार कब ज़फ़ा कर दे
-‘ग़ाफ़िल’