बहुत तुरपाइयाँ कीं रिश्तों की फिर क्यूँ दरार आया।
तुम्हारी एक मीठी बोल पर बेजा क़रार आया।।
ग़मे-फ़ुर्क़त का जो अहसास था वह फिर भी थोड़ा था,
जो ग़म इस वस्ल के मौसिम में आया बेशुमार आया।
तुम्हारी बेरूख़ी का यह हुआ है फ़ाइदा मुझको,
पसे-मुद्दत मेरा ख़ुद पर यक़ीनन इख़्तियार आया।
सहेजो इशरतों को ख़ुद की जो इक मुश्त हासिल हैं,
मुझे गर लुत्फ़ आया भी कभी तो क़िस्तवार आया।
ऐ ग़ाफ़िल! होश में आ नीमशब में फिर हुई हलचल,
तुझे तुझसे चुराने फिर से कोई ग़मगुसार आया।।
(ग़ार= बड़ा गड्ढा, पसे-मुद्दत=मुद्दत बाद, नीम शब=अर्द्धरात्रि, ग़मगुसार=सहानुभूति रखने वाला)
-गाफ़िल
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तुम्हारी एक मीठी बोल पर बेजा क़रार आया।।
ग़मे-फ़ुर्क़त का जो अहसास था वह फिर भी थोड़ा था,
जो ग़म इस वस्ल के मौसिम में आया बेशुमार आया।
तुम्हारी बेरूख़ी का यह हुआ है फ़ाइदा मुझको,
पसे-मुद्दत मेरा ख़ुद पर यक़ीनन इख़्तियार आया।
सहेजो इशरतों को ख़ुद की जो इक मुश्त हासिल हैं,
मुझे गर लुत्फ़ आया भी कभी तो क़िस्तवार आया।
ऐ ग़ाफ़िल! होश में आ नीमशब में फिर हुई हलचल,
तुझे तुझसे चुराने फिर से कोई ग़मगुसार आया।।
(ग़ार= बड़ा गड्ढा, पसे-मुद्दत=मुद्दत बाद, नीम शब=अर्द्धरात्रि, ग़मगुसार=सहानुभूति रखने वाला)
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