मेरी जानिब से आप सबको दो क़त्आत नज़्र किये जाते हैं मुलाहिज़ा फ़र्माएँ!
1.
है मुसन्निफ़ की कोई जाने ग़ज़ल
या मुसब्बिर की कोई मूरत है
ख़ूबसूरत फ़क़त न कहिए इसे
हुस्न तो इश्क़ की ज़ुरूरत है
2.
देखिए! ग़ौर कीजिए इसपर
बाद अर्से के ऐसी सूरत है
क्या नमूज़ी बताएगा इसको
हम हैं फिर प्यार का महूरत है
-‘ग़ाफ़िल’