फ़र्क़ क्या करे कोई ऐसे पल भी आते हैं
वर्क़ कौंधती है या आप मुस्कुराते हैं
बात एक ही तो है यह के राहे उल्फ़त में
लुत्फ़ मुझको आ जाए आप या के पाते हैं
सच तो है जो लगता है दिल सराय सा अपना
देखता हूँ कितने ही लोग आते जाते हैं
उसकी अपनी ख़ूबी है हिज़्र को न कम आँको
जी से पास हैं जो सब दूरियों के नाते हैं
मानता हूँ ग़ाफ़िल हूँ है अक़ूबदारी पर
क्यूँ कहूँ के आप इतना क्यूँ मुझे बनाते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
वर्क़ कौंधती है या आप मुस्कुराते हैं
बात एक ही तो है यह के राहे उल्फ़त में
लुत्फ़ मुझको आ जाए आप या के पाते हैं
सच तो है जो लगता है दिल सराय सा अपना
देखता हूँ कितने ही लोग आते जाते हैं
उसकी अपनी ख़ूबी है हिज़्र को न कम आँको
जी से पास हैं जो सब दूरियों के नाते हैं
मानता हूँ ग़ाफ़िल हूँ है अक़ूबदारी पर
क्यूँ कहूँ के आप इतना क्यूँ मुझे बनाते हैं
-‘ग़ाफ़िल’