Wednesday, May 02, 2012

कुछ कुण्डलियाँ-

1-
नारी संग से क्यों डरे, नारी सुख कर धाम।
नारी बिन रघुपतिहुँ कर, होत अधूरा नाम।।
होत अधूरा नाम, कहन मां नाहिं सुहायी,
नारी नर-मन-कलुस पलक मह दूर भगाई,
खिला पुष्प बिन ना सुहाइ जइसै फुलवारी,
ग़ाफ़िल मन बगिया वइसै लागै बिन नारी।।
2-
घर का मुखिया करमठी, रचता नये पिलान।
विकसित हो यह घर सदा बढ़ै मान-सम्मान।।
बढ़ै मान-सम्मान, सबहि मिलि काम करैंगे।
हंसी-खुशी से सबकी झोली रोज़ भरैंगे।
कछुक स्वारथी डारे हैं मन बीच तफ़रका।
ग़फ़िलौ सोचै का होई अब गति यहि घर का।।
3-
बातहिं बात बनाइये, बात बने बनिजात।
देखा बातहिं बात मह, भिश्ती नृपति कहात।।
भिश्ती नृपति कहात, होत दिल्ली कर राजा।
सिक्का चाम चलाइ, बजावत आपन बाजा।
ग़ाफ़िल कहै बिचारि, बैठिहौं पीपल पातहिं।
बात बिगरि जौ जाय, तिहारो बातहिं बातहिं।।
                                                                        -ग़ाफ़िल

कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.