फिर भले रस्म ही निभाओ तो
हँसके मेरे क़रीब आओ तो
इक पड़ी चीज़ जो मिली तुमको
मेरा गुम दिल न हो दिखाओ तो!
आईना आपकी करे तारीफ़
यार अपना नक़ाब उठाओ तो
आगजन तुमको मान लूँगा मैं
आग दिल में अगर लगाओ... तो!!
दिल है नाशाद ये भी कम है क्या
जो कहे हो के क़स्म खाओ तो
यूँ भी क्या रूठना है ग़ाफ़िल से
एक अर्सा हुआ सताओ तो
-‘ग़ाफ़िल’
हँसके मेरे क़रीब आओ तो
इक पड़ी चीज़ जो मिली तुमको
मेरा गुम दिल न हो दिखाओ तो!
आईना आपकी करे तारीफ़
यार अपना नक़ाब उठाओ तो
आगजन तुमको मान लूँगा मैं
आग दिल में अगर लगाओ... तो!!
दिल है नाशाद ये भी कम है क्या
जो कहे हो के क़स्म खाओ तो
यूँ भी क्या रूठना है ग़ाफ़िल से
एक अर्सा हुआ सताओ तो
-‘ग़ाफ़िल’