न यूँ हुआ है के घर हर कोई मक़ाँ निकले
के गर हो आग यक़ीनन वहाँ धुआँ निकले
तभी कहूँगा के आया है लुत्फ़ मुझको भी गर
ज़मीन खोदूँ मैं और उससे आसमाँ निकले
किसी भी दौर में कोई कहीं भी कैसी भी
पढ़े किताब तेरी मेरी दास्ताँ निकले
कुछ ऐसी बात है मुझमें के है नसीब मेरा
पहुँच गया तो बियाबाँ भी गुलसिताँ निकले
न इल्म होगा ख़ुदा को भी यह के मैं ग़ाफ़िल
चलूँ कहाँ से मेरा रास्ता कहाँ निकले
-‘ग़ाफ़िल’
के गर हो आग यक़ीनन वहाँ धुआँ निकले
तभी कहूँगा के आया है लुत्फ़ मुझको भी गर
ज़मीन खोदूँ मैं और उससे आसमाँ निकले
किसी भी दौर में कोई कहीं भी कैसी भी
पढ़े किताब तेरी मेरी दास्ताँ निकले
कुछ ऐसी बात है मुझमें के है नसीब मेरा
पहुँच गया तो बियाबाँ भी गुलसिताँ निकले
न इल्म होगा ख़ुदा को भी यह के मैं ग़ाफ़िल
चलूँ कहाँ से मेरा रास्ता कहाँ निकले
-‘ग़ाफ़िल’