Sunday, September 30, 2018

हुज़ूर आपसे राबिता चाहते थे

हम उल्फ़त में साथ आपका चाहते थे
बता दीजिए आप क्या चाहते थे

नहीं गो है मुम्क़िन मगर हर्ज़ क्या था
जो हिज्रत भी हम ख़ुशनुमा चाहते थे

मिलीं हमको रुस्वाइयाँ जबके हम तो
हुज़ूर आपसे राबिता चाहते थे

हमें देखकर क्यूँ उठे बज़्म से सब
वही जो हमें देखना चाहते थे

उन्हें भी तो हम रास आते नहीं अब
जो हमसा ही ग़ाफ़िल हुआ चाहते थे

-‘ग़ाफ़िल’

Saturday, September 29, 2018

अजल से भी निभा लेते हैं गर हम ख़ुद पे आते हैं

हमारे जिस्म को जो रात चादर सा बिछाते हैं
वही दिन के उजाले में पड़ी सलवट गिनाते हैं

ग़मों को दूर करने का तरीक़ा एक है यह भी
के उनको देखिए अक़्सर जो अक़्सर मुस्कुराते हैं

करें बर्बाद वक़्त अपना चलाकर बात क्यूँ उनकी
जो रातो दिन फरेबों में ही वक़्त अपना गँवाते हैं

कभी कम हो नहीं सकते हमारे हौसले हर्गिज
ग़ज़ल तो गाते ही गाते हैं हम नौहा भी गाते हैं

तू अपनी देख हम उश्शाक़ हैं ग़ाफ़िल! हमारा क्या!!
अजल से भी निभा लेते हैं गर हम ख़ुद पे आते हैं

-‘ग़ाफ़िल’

Thursday, September 27, 2018

मत निगाहों से ही खँगाल मुझे

न दिखा ऐसे फूले गाल मुझे
दिल से दे तूू भले निकाल मुझे

तू तग़ाफ़ुल करे है पर कुछ और
चाहिए तो था देखभाल मुझे

तेरे काम आएँ तेरे हाथ भी कुछ
मत निगाहों से ही खँगाल मुझे

है गिरा तू ख़ुद अपनी मर्ज़ी से फिर
क्यूँ ये कहना के आ सँभाल मुझे

पेश हैं अपने पुरख़तर अश्आर
कहके ग़ाफ़िल न आज टाल मुझे

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, September 26, 2018

ग़ाफ़िल पे क्या कभी भी भरोसा किया गया

क्यूँ पूछते हो और भी क्या क्या किया गया
रब के भी नाम पर तो तमाशा किया गया

करते रहे हो आप ही जैसा किया गया
कहते भी आप ही हो के अच्छा किया गया

कहकर कि इश्क़ हमसे हमेशा किया गया
इस तौर भी तो हमको है रुस्वा किया गया

उसका हो क्या जो वस्ल का वादा किया गया
इक बार फिर से हमको अकेला किया गया

होता अगर तो बात भी होती कुछ और पर
ग़ाफ़िल पे क्या कभी भी भरोसा किया गया

-‘ग़ाफ़िल’

Saturday, September 22, 2018

आओ प्यार करें

कौन कहता है जाँ निसार करें
है बहुत यह के आओ प्यार करें

जाने भी दें हम आशिक़ों पे आप
क्या ज़ुरूरी है ऐतबार करें

हैं मुख़ालिफ़ अब आपके हम भी
हमको अपनों में अब शुमार करें

या चलाएँ न तीर सीने पे आप
या चलाएँ तो आर पार करें

आप ग़ाफ़िल हैं इस क़दर फिर हम
कैसे उल्फ़त का कारोबार करें

-‘ग़ाफ़िल’

Friday, September 14, 2018

कौन अब वादा वफ़ा करता है

क्या कुछ इंसान भला करता है
जो भी करता है ख़ुदा करता है

हो मुहब्बत के हो नफ़्रत की कशिश
जी को मौला ही अता करता है

उसने भी घूरके मुझको देखा
उससे जब पूछा के क्या करता है

तू न आए पै तेरे डर से अजल
आदमी रोज़ मरा करता है

मुझसे तक़्दीर मेरी रोज़-ब-रोज़
कोई तो है जो जुदा करता है

क्यूँ नहीं करता है मेरा कुछ अगर
तू ही नुक़्सानो नफ़ा करता है

है कठिन यूँ भी नहीं ग़ाफ़िल पर
कौन अब वादा वफ़ा करता है

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, September 12, 2018

दिखी सूरत जो अपनी तो ज़माने का ख़याल आया

ख़याल आने के पल सबको ज़माने का ख़याल आया
मुझे तो तब भी तेरे आस्ताने का ख़याल आया

हज़ारों संग ताने जाने कितने सहके सुनके भी
गया जो राहे उल्फ़त उस दीवाने का ख़याल आया

न जाने क्यूँ लगा था यह ज़माना ख़ूबसूरत है
दिखी सूरत जो अपनी तो ज़माने का ख़याल आया

गया था भूल होती है तबस्सुम नाम की शै भी
किसी को देखकर अब मुस्कुराने का ख़याल आया

है रुख़्सत की घड़ी यह कोई तो उससे ज़रा पूछे
उसे क्यूँ वस्ल का गीत अब ही गाने का ख़याल आया

ख़यालों में कभी लाया नहीं जिस शख़्स को ग़ाफ़िल
मुझे आज उसके यूँ ही आने जाने का ख़याल आया

-‘ग़ाफ़िल’

Friday, September 07, 2018

जो कहते थे के हम आया करेंगे

भले कुछ हैं जो भरमाया करेंगे
मुसाफ़िर मंज़िलें पाया करेंगे

हम उश्शाक़ों का फिर होगा भला क्या
अगर आप ऐसे बिसराया करेंगे

तसव्वुर क्या जहाँ जब आप चाहें
इशारा हो हम आ जाया करेंगे

क़रार आए करेंगे क्या कुछ ऐसा
के आप ऐसे ही मुस्‍काया करेंगे

न आए वो किया क्‍या जाए ग़ाफ़िल
जो कहते थे के हम आया करेंगे

-'ग़ाफ़िल'

Thursday, September 06, 2018

ज़िन्दगी तुझपे है गुमाँ फिर भी

मर्तबा क्या है देखिए पर उफ़ुक़
फ़र्श पर ख़ुश है आसमाँ फिर भी
गोया है मौत ही तेरी मंज़िल
ज़िन्दगी तुझपे है गुमाँ फिर भी

-ग़ाफ़िल’

Saturday, September 01, 2018

लगे है पर हम तुमको पाने वाले हैं

दर्दे दिल ही है जो साथ है रोज़ो शब
और एहसासात आने जाने वाले हैं

ऐसा भी है कहाँ के तुम मिल जाओगे
लगे है पर हम तुमको पाने वाले हैं

-‘ग़ाफ़िल’