वह सिलसिला-ए-मात जो जारी है आज भी
उसमें सुना है मेरी ही बारी है आज भी
शर्मा के मेरे पहलू से उठ जाना बार बार
तेरी अदा ये वैसी ही प्यारी है आज भी
कौंधी थी वर्क़ सी जो कसक दरमियाने दिल
यारो सुरूर उसका ही तारी है आज भी
इज़्हारे इश्क़ की ये मेरी शोख़ तमन्ना
तेरे ग़ुरूरे ख़ाम से हारी है आज भी
गोया के हाले दौर में जाता रहा चलन
तलवार मेरी फिर भी दुधारी है आज भी
इतिहास हो चुका है गो भूगोल जिस्म का
लेकिन शराबे लब की ख़ुमारी है आज भी
ग़ाफ़िल वो मुस्कुरा के तेरा टालना मुझे
हर इक अदा-ए-शोख़ पे भारी है आज भी
-‘ग़ाफ़िल’
उसमें सुना है मेरी ही बारी है आज भी
शर्मा के मेरे पहलू से उठ जाना बार बार
तेरी अदा ये वैसी ही प्यारी है आज भी
कौंधी थी वर्क़ सी जो कसक दरमियाने दिल
यारो सुरूर उसका ही तारी है आज भी
इज़्हारे इश्क़ की ये मेरी शोख़ तमन्ना
तेरे ग़ुरूरे ख़ाम से हारी है आज भी
गोया के हाले दौर में जाता रहा चलन
तलवार मेरी फिर भी दुधारी है आज भी
इतिहास हो चुका है गो भूगोल जिस्म का
लेकिन शराबे लब की ख़ुमारी है आज भी
ग़ाफ़िल वो मुस्कुरा के तेरा टालना मुझे
हर इक अदा-ए-शोख़ पे भारी है आज भी
-‘ग़ाफ़िल’