किस्मत की लत गन्दी लत है
वैसे भी किस्मत किस्मत है
रोने की अब क्या किल्लत है
वस्लत नहीं है ये हिज्रत है
एक क़त्आ-
‘‘टाल रहा है इश्क़ की अर्ज़ी
लगता है तू बदनीयत है
फूल कोई गो खिला है जी में
चेहरे की जो यह रंगत है’’
इतना गुमसुम रहता है क्या
तुझको भी मरज़े उल्फ़त है
इश्क़ में जो है मेरी है ही
क्या यूँ ही तेरी भी गत है
लेकिन दुआ सलाम तो है ही
आपस में गोया नफ़्रत है
एक और क़त्आ-
‘‘जी छूटा जंजाल मिटा फिर
पाने की किसको हाजत है
साथ निभाए भी कितने दिन
ग़ाफ़िल ये शानोशौकत है’’
-‘ग़ाफ़िल’
वैसे भी किस्मत किस्मत है
रोने की अब क्या किल्लत है
वस्लत नहीं है ये हिज्रत है
एक क़त्आ-
‘‘टाल रहा है इश्क़ की अर्ज़ी
लगता है तू बदनीयत है
फूल कोई गो खिला है जी में
चेहरे की जो यह रंगत है’’
इतना गुमसुम रहता है क्या
तुझको भी मरज़े उल्फ़त है
इश्क़ में जो है मेरी है ही
क्या यूँ ही तेरी भी गत है
लेकिन दुआ सलाम तो है ही
आपस में गोया नफ़्रत है
एक और क़त्आ-
‘‘जी छूटा जंजाल मिटा फिर
पाने की किसको हाजत है
साथ निभाए भी कितने दिन
ग़ाफ़िल ये शानोशौकत है’’
-‘ग़ाफ़िल’