Friday, May 31, 2019

अरे ग़ाफ़िल अभी ज़िंदादिली जैसी की तैसी है

अभी भी जो ये जी की बेख़ुदी जैसी की तैसी है
अभी भी शायद अपनी आशिक़ी जैसी की तैसी है

कभी शोले भड़क उट्ठे कभी पुरनम हुईं आँखें
निगाहों की मगर आवारगी जैसी की तैसी है

लगाता हूँ मैं गोता रोज़ उल्फ़त के समन्दर में
न जाने क्यूँ मगर तश्नालबी जैसी की तैसी है

बहुत जी को सँभाला कोशिशें कीं यूँ के अब शायद
बदल जाए ज़रा पर ज़िन्दगी जैसी की तैसी है

खुबी जाती हैं निश्तर सी तेरी बातें मेरे जी में
अरे ग़ाफ़िल अभी ज़िंदादिली जैसी की तैसी है

-‘ग़ाफ़िल’

Friday, May 10, 2019

आजकल

क्या लहू में है रवानी आजकल
है कहाँ आँखों का पानी आजकल

आते हैं उड़ जाते हैं पर फुर्र से
ख़्वाब जो हैं आसमानी आजकल

नाम तो अपना है लेकिन ज़िन्दगी
लिख रही किसकी कहानी आजकल

मैं हवाओं की ज़ुबानी वक़्त की
सुन रहा हूँ लन्तरानी आजकल

गुंचों की फ़ित्रत है ग़ाफ़िल फूल हों
उसमें भी है आनाकानी आजकल

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, May 08, 2019

क्या हुआ जो आदमी जैसा हुआ

जबसे रू-ए-हुस्न पे पर्दा हुआ
पूछिए मत आशिक़ी का क्या हुआ

मैं बयाँ करता भी कितना दर्दे दिल
शब हुई पूरी चलो अच्छा हुआ

और भी जबके हैं रिश्तेदारियाँ
क्यूँ फ़क़त अपनी का ही चर्चा हुआ

कल हवा आई थी जानिब से तेरी
आज भी है जी मेरा बहका हुआ

अपने कुछ हो जाएँ होती है ख़ुशी
ठीक है जो बेवफ़ा अपना हुआ

शह्र में इतने रफ़ूगर हैं तो फिर
दिल तेरा है क्यूँ फटा टूटा हुआ

कितने दर्या ख़ुद में लेता है उतार
क्या समन्दर सा कोई प्यासा हुआ

आदमी तो हो नहीं पाया तू फिर
क्या हुआ जो आदमी जैसा हुआ

तेरे हिस्से में हूँ मैं पर जाने क्यूँ
मेरे हिस्से मेरा ही साया हुआ

हैं तेरे ही दम पर एहसासों के फूल
फ़ख़्र कर तू अश्कों का क़तरा हुआ

और ग़ाफ़िल की कहानी कुछ नहीं
इक सिवा इसके के है खोया हुआ

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, May 01, 2019

हुज़ूर आप क्यूँ इस क़दर देखते हैं

वो इन्कार करते हैं गो फिर भी मुझको
बचाकर नज़र भर नज़र देखते हैं
जो क़ातिल हैं कैसा गिला उनसे लेकिन
हुज़ूर आप क्यूँ इस क़दर देखते हैं

-‘ग़ाफ़िल’