किए हैं वैसे तो रुस्वा हज़ार बार मुझे
समझ रहे हैं मगर दोस्त ग़मग़ुसार मुझे
बहुत यक़ीन है नज़रों पे तेरी जानेमन
कभी उधार की नज़रों से मत निहार मुझे
मिले न इश्क़ में थोड़ा भी है दुआ लेकिन
मिले अगर तो मिले दर्द बेशुमार मुझे
मुझे है इल्म के खाली है जेब या के भरी
ये ठीक है के तू समझे नसीबदार मुझे
भले न ख़ुश्बू हो खिलता है बारहा ग़ाफ़िल
नहीं है उज़्र तू कह तो सदाबहार मुझे