आदाब दोस्तो! कल दिनांक 19-07-2019 को शाइर व कवि परम् आदरेय स्वर्गीय गोपालदास ‘नीरज’ जी की प्रथम् पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी मशहूर ग़ज़ल, ‘‘ख़ुश्बू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की, खिड़की कोई खुली है फिर उनके मक़ान की’’, की ज़मीन पर अपने हुए चंद अश्आर बतौर श्रद्धांजलि शाइर शिरमौर को समर्पित-
जो कर न पाए आज तक अपने मक़ान की
कैसे हो फ़िक़्र ऐसों को दुनिया जहान की
जिसके ज़ुबाँ हो उसकी लगाओ तो अस करूँ
बोली लगा रहे हो सभी बेज़ुबान की
कुछ भी न कह सकूँगा कभी उनके बरखि़लाफ़
उल्फ़त में जाग जाग के जिसने बिहान की
इसका नहीं भरम है के दुश्मन हुआ जहाँ
मुझको पड़ी है अपनी मुहब्बत के शान की
सूरज नहीं जो चाँद तो होगा ही ज़ेरे पा
ग़ाफ़िल अगर उड़ान रही आसमान की
-‘ग़ाफ़िल’