कोई छूने से आबे हैवाँ जल जाए तो क्या कहिए
किसी की आरज़ू में दम निकल जाए तो क्या कहिए
निगाहे लुत्फ़ उसका है मेरी जानिब, हूँ किस्मतवर
पर इस पल ही मेरी किस्मत बदल जाए तो क्या कहिए
है आदत बचपने की अब छुड़ाए ख़ाक छूटेगी
मेरा भी जी तितलियों पर मचल जाए तो क्या कहिए
ज़रा सोचो! ज़रा सोचो!! मैं आऊँ अंजुमन में और
उसी ही दम सुहानी शाम ढल जाए तो क्या कहिए
निशानेबाज गो माहिर हो पर अन्जाने ही ग़ाफ़िल
निशाना गर किसी सूरत सँभल जाए तो क्या कहिए
-‘ग़ाफ़िल’
आबे हैवाँ= अमृत