Monday, October 17, 2022

ज़िन्दगी पुरशबाब होती है


क्या कहूँ क्या जनाब होती है
जब भी वो मह्वेख़्वाब होती है

शाम सुह्बत में उसकी जैसी भी हो
वो मगर लाजवाब होती है

उम्र की बात करने वालों सुनो
ज़िन्दगी पुरशबाब होती है

वैसे पढ़ने का अब चलन न रहा
वर्ना हर शै किताब होती है

ख़ुद ही बन जाती है दवा ग़ाफ़िल
पीर जब बेहिसाब होती है

-‘ग़ाफ़िल’