रोज़ क्यूँ वो ही कहा जाए जो भाए सबको
है बुरा क्या जो कभी रात को मैं रात कहूँ
आप कहिए! के कहूँ आप जो कहने को कहें
या के जज़्बातों में उलझे हुए हालात कहूँ
-‘ग़ाफ़िल’
है बुरा क्या जो कभी रात को मैं रात कहूँ
आप कहिए! के कहूँ आप जो कहने को कहें
या के जज़्बातों में उलझे हुए हालात कहूँ
-‘ग़ाफ़िल’