Monday, January 02, 2017

किस सिफ़त का ऐ मेरे मौला तेरा इजलास है

इस शबे फ़ुर्क़त में तारीकी तो अपने पास है
क्यूँ हुआ ग़ाफ़िल उदास इक यूँ भी अपना ख़ास है

दूर रह सकती है कोई जान कब तक जिस्म से
जान होने का उसे गर वाक़ई एहसास है

प्यास की शिद्दत मेरी पूछो न मुझसे दोस्तो!
बह्र से तफ़्तीश कर लो उसकी कैसी प्यास है

क़त्ल भी मेरा हुआ इल्ज़ाम भी है मेरे सर
किस सिफ़त का ऐ मेरे मौला तेरा इजलास है

मेरी भी हाँ तेरी भी हाँ जब है तो मेरे सनम
फ़ासिला जो दरमियाँ है क्या फ़क़त बकवास है

-‘ग़ाफ़िल’

No comments:

Post a Comment