Sunday, December 25, 2011

कस्म गोया तेरी खायी न गयी

दिल से तस्वीर मिटायी न गयी
याद तेरी थी भुलायी न गयी

ग़ुफ़्तग़ू होती मज़ेदार मगर
बात बाक़द्र चलायी न गयी

खोजता आज भी रहता हूँ जिसे
वह ख़ुशी हमसे तो पायी न गयी

खा लिया मैंने क़फ़स की भी हवा
क़स्म गोया तेरी खायी न गयी

बढ़के पल्लू को पकड़ लेने की
रस्म ग़ाफ़िल से निभायी न गयी

-‘ग़ाफ़िल’