ले लो ये बज़्मे सुखन वाली रियासत
मुँह नहीं ही लगने की अपनी है आदत
कुछ न पाओगे तग़ाफ़ुल करके मुझसे
सोचते हो गर के मिल जाएगी इश्रत
क्यूँ किसी को इश्क़ में रुस्वा करूँ पर
कर तो सकता हूँ मैं गो ऐसी हिमाक़त
है ज़ुरूरी यह के याद इतना रहे ही
आदमी है आदमी अपनी बदौलत
ढूँढते ग़ाफ़िल हैं सारे इश्क़ में क्या
इश्क़ है ख़ुद आप ही में जबके नेमत
-‘ग़ाफ़िल’
मुँह नहीं ही लगने की अपनी है आदत
कुछ न पाओगे तग़ाफ़ुल करके मुझसे
सोचते हो गर के मिल जाएगी इश्रत
क्यूँ किसी को इश्क़ में रुस्वा करूँ पर
कर तो सकता हूँ मैं गो ऐसी हिमाक़त
है ज़ुरूरी यह के याद इतना रहे ही
आदमी है आदमी अपनी बदौलत
ढूँढते ग़ाफ़िल हैं सारे इश्क़ में क्या
इश्क़ है ख़ुद आप ही में जबके नेमत
-‘ग़ाफ़िल’