जो तेरे हुस्न मेरे इश्क़ की खिचड़ी पकी होती।
न भूखा मैं पड़ा होता न भूखी तू पड़ी होती।।
हुआ बर्बाद मैं तेरी ही सुह्बत में ऐ जानेमन!
तुझे गर यह ख़बर होती तुझे कितनी ख़ुशी होती।
मुझे ग़ाफ़िल ही कहकर बज़्म में अपनी बुला लेती,
न पड़ता फ़र्क़ कोई बस ज़रा सी दिल्लगी होती।
मुझी से गुफ़्तगू में वह बला की शर्म या अल्ला!
ग़ज़ब का लुत्फ़ होता गुफ़्तगू मुझसे हुई होती।
फ़लक से चाँद तारे ला तेरा दामन सजा देता,
ये मुश्किल बात तू शादी से पहले गर कही होती।
सभी उश्शाक़ लेते आज मुझसे मश्वरा ‘ग़ाफ़िल’,
अगरचे शह्र में बदनाम अपनी आशिक़ी होती।
न भूखा मैं पड़ा होता न भूखी तू पड़ी होती।।
हुआ बर्बाद मैं तेरी ही सुह्बत में ऐ जानेमन!
तुझे गर यह ख़बर होती तुझे कितनी ख़ुशी होती।
मुझे ग़ाफ़िल ही कहकर बज़्म में अपनी बुला लेती,
न पड़ता फ़र्क़ कोई बस ज़रा सी दिल्लगी होती।
मुझी से गुफ़्तगू में वह बला की शर्म या अल्ला!
ग़ज़ब का लुत्फ़ होता गुफ़्तगू मुझसे हुई होती।
फ़लक से चाँद तारे ला तेरा दामन सजा देता,
ये मुश्किल बात तू शादी से पहले गर कही होती।
सभी उश्शाक़ लेते आज मुझसे मश्वरा ‘ग़ाफ़िल’,
अगरचे शह्र में बदनाम अपनी आशिक़ी होती।