हाले कमतर हाले बरतर एक जैसे हो गए
दरमियाँ तूफ़ान सब घर एक जैसे हो गए
हमको मिल पाया न मौक़ा उनको मिल पाई न अक़्ल
इस तरह अपने मुक़द्दर एक जैसे हो गए
एक पूरब एक पच्छिम दिख रहा था जंग में
और जब आए वो घर पर एक जैसे हो गए
एक क़त्आ-
‘‘राह के क्या मील के क्या आज के इस दौर में
किस अदा से सारे पत्थर एक जैसे हो गए
सोच ग़ाफ़िल फिर सफ़र अपना कटेगा किस तरह
रहजनो रहबर भी यूँ गर एक जैसे हो गए’’
-‘ग़ाफ़िल’
दरमियाँ तूफ़ान सब घर एक जैसे हो गए
हमको मिल पाया न मौक़ा उनको मिल पाई न अक़्ल
इस तरह अपने मुक़द्दर एक जैसे हो गए
एक पूरब एक पच्छिम दिख रहा था जंग में
और जब आए वो घर पर एक जैसे हो गए
एक क़त्आ-
‘‘राह के क्या मील के क्या आज के इस दौर में
किस अदा से सारे पत्थर एक जैसे हो गए
सोच ग़ाफ़िल फिर सफ़र अपना कटेगा किस तरह
रहजनो रहबर भी यूँ गर एक जैसे हो गए’’
-‘ग़ाफ़िल’