Friday, October 12, 2012

रात का सूनापन अपना था

रात का सूनापन अपना था।
फिर जो आया वह सपना था॥

नियति स्वर्ण की थी ऐसी के
उसको भट्ठी में तपना था।

दौरे-तरक्क़ी इंसाँ काँपे
जबकी हैवाँ को कँपना था।

गरदन तो बेजा नप बैठी
दुष्ट दस्त को ही नपना था।

ग़ाफ़िल त्राहिमाम चिल्लाया
गोया राम-नाम जपना था।

आप फ़ेसबुक आई.डी. से भी कमेंट कर सकते हैं-