रात का सूनापन अपना था।
फिर जो आया वह सपना था॥
नियति स्वर्ण की थी ऐसी के
उसको भट्ठी में तपना था।
दौरे-तरक्क़ी इंसाँ काँपे
जबकी हैवाँ को कँपना था।
गरदन तो बेजा नप बैठी
दुष्ट दस्त को ही नपना था।
ग़ाफ़िल त्राहिमाम चिल्लाया
गोया राम-नाम जपना था।
फिर जो आया वह सपना था॥
नियति स्वर्ण की थी ऐसी के
उसको भट्ठी में तपना था।
दौरे-तरक्क़ी इंसाँ काँपे
जबकी हैवाँ को कँपना था।
गरदन तो बेजा नप बैठी
दुष्ट दस्त को ही नपना था।
ग़ाफ़िल त्राहिमाम चिल्लाया
गोया राम-नाम जपना था।
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