कोई नाज़ुक सी कली याद नहीं
कब थी पुरवाई चली याद नहीं
हुस्न ये सच है तेरी ख़्वाहिश कब
मेरी आँखों में पली याद नहीं
जब गुज़रता रहा वक़्त और था वह
अब किधर है वो गली याद नहीं
हिज्र तो याद है पर वस्ल की रात
आई कब और ढली याद नहीं
गो मैं ग़ाफ़िल हूँ नहीं इश्क़ की पर
आग थी कैसे जली याद नहीं
-‘ग़ाफ़िल’
कब थी पुरवाई चली याद नहीं
हुस्न ये सच है तेरी ख़्वाहिश कब
मेरी आँखों में पली याद नहीं
जब गुज़रता रहा वक़्त और था वह
अब किधर है वो गली याद नहीं
हिज्र तो याद है पर वस्ल की रात
आई कब और ढली याद नहीं
गो मैं ग़ाफ़िल हूँ नहीं इश्क़ की पर
आग थी कैसे जली याद नहीं
-‘ग़ाफ़िल’