कल क्या थे और आज वो कितना बदल गये
गिरगिट से भी जनाब कुछ आगे निकल गये
जी में हमारे आग लगाने को मोहतरम
आए हज़ार बार मगर खुद ही जल गये
देखा जो जामे चश्म तो फिर आ गया क़रीब
और ये हुआ के तीरे नज़र दिल पे चल गये
रोना भी यार अपना ग़ज़ब दे गया नफ़ा
जी में थे जो मलाल सब अश्कों में ढल गये
कुछ और ही तरह से अनासिर का अस्र है
जोे आप भी तो चाँद के आते पिघल गये
कल की न बात कीजिए मालूम भी है क्या
आया तो एक भी न मगर कितने कल गये
ग़ाफ़िल जी राजे इश्क़ यहाँ फ़ाश यूँ हुआ
वे तो नज़र गिराए मगर हम सँभल गये
अनासिर=पंचभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश)
-‘ग़ाफ़िल’
गिरगिट से भी जनाब कुछ आगे निकल गये
जी में हमारे आग लगाने को मोहतरम
आए हज़ार बार मगर खुद ही जल गये
देखा जो जामे चश्म तो फिर आ गया क़रीब
और ये हुआ के तीरे नज़र दिल पे चल गये
रोना भी यार अपना ग़ज़ब दे गया नफ़ा
जी में थे जो मलाल सब अश्कों में ढल गये
कुछ और ही तरह से अनासिर का अस्र है
जोे आप भी तो चाँद के आते पिघल गये
कल की न बात कीजिए मालूम भी है क्या
आया तो एक भी न मगर कितने कल गये
ग़ाफ़िल जी राजे इश्क़ यहाँ फ़ाश यूँ हुआ
वे तो नज़र गिराए मगर हम सँभल गये
अनासिर=पंचभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश)
-‘ग़ाफ़िल’