Saturday, November 22, 2014
Wednesday, November 19, 2014
पी जाइए पर अश्क़ बहाया नहीं करिए
इन मोतियों को ऐसे ही जाया न कीजिए
पी जाइए पर अश्क़ बहाया न कीजिए
भर जाएँगे ये ज़ल्द रहेंगे अगर निहाँ
ज़ख़्मों को आप यूँ भी नुमाया न कीजिए
-‘ग़ाफ़िल’
पी जाइए पर अश्क़ बहाया न कीजिए
भर जाएँगे ये ज़ल्द रहेंगे अगर निहाँ
ज़ख़्मों को आप यूँ भी नुमाया न कीजिए
-‘ग़ाफ़िल’
Monday, November 17, 2014
शब्बाख़ैर!
न ग़ाफ़िल हो परीशाँ नाज़नीनों की है यह आदत
के सब ख़्वाबों में मिलती हैं तज़ुर्बेकार कहते हैं
शब्बाख़ैर!
-‘ग़ाफ़िल’
के सब ख़्वाबों में मिलती हैं तज़ुर्बेकार कहते हैं
शब्बाख़ैर!
-‘ग़ाफ़िल’
Tuesday, November 04, 2014
वो ज़माना और था
वो ज़माना और था अब ये ज़माना और है।
वो तराना और था अब ये तराना और है।।
यार के जख़्मों को धोया आँसुओं की धार से,
वो दीवाना और था अब ये दीवाना और है।
टूटता था दिल तो बन जाती हसीं इक दास्ताँ,
वो फ़साना और था अब ये फ़साना और है॥
देखते वे ग़ैर-जानिब क़त्ल हो जाते थे हम,
वो निशाना और था अब ये निशाना और है।
मुद्दई तब भी थीं ग़ाफ़िल! ग़ालिबन् नज़रें यही,
वो बहाना और था अब ये बहाना और है।।
-‘ग़ाफ़िल’
Subscribe to:
Posts (Atom)