Wednesday, April 30, 2014
Sunday, April 20, 2014
चलो आज फिर वह तराना बनाएं
चलो आज फिर वह तराना बनाएँ
वो गुज़रा हुआ इक ज़माना बनाएँ
वो झुरमुट की छाँव वो दरिया का पानी
बहकती हुई दो जवाँ ज़िन्दगानी
ज़मीं आसमाँ का अचानक वो मिलना
वो मिलकर सँभलना सँभलकर फिसलना
जो गाया कभी था वो गाना बनाएँ
चलो आज फिर वह तराना बनाएँ
वो पच्छिम के बादल का उठना अचानक
ज़मीं का सिहरना सिमटना अचानक
अचानक ही बादल का जमकर बरसना
नये अनुभवों से ज़मीं का सरसना
मधुरस्मरण का ख़जाना बनाएँ
चलो आज फिर वह तराना बनाएँ
Tuesday, April 15, 2014
दर्द लिक्खूँ मैं या दवा लिक्खूँ
दर्द लिक्खूँ मैं या दवा लिक्खूँ
सूरते-नाज को क्या क्या लिक्खूँ
ख़ुद को देखा न बारहा जिसमें
तेरा चेहरा वो आईना लिक्खूँ
ना मचलने दे ना तड़पने दे
तेरा वादा भी अब सज़ा लिक्खूँ
मैं लगाया मगर चढ़ी ही नहीं
तुझको बेरंग सी हिना लिक्खूँ
-‘ग़ाफ़िल’
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