Saturday, September 30, 2017

बेआवाज़ की बातें करो

पहले ही अंज़ाम? उफ़्!!! आग़ाज़ की बातें करो!
कर रहे हो आज तो फिर आज की बातें करो!!
रोज़ तो करते ही हो आवाज़ की बातें तुम आज,
टूटते इस दिल की बेआवाज़ की बातें करो!!

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, September 27, 2017

सब रोज़गार अपने चलते ही ख़्वाब पर हैं

जी! हौसले हमारे पूरे शबाब पर हैं
डूबेंगे हम न हर्गिज़ माना के आब पर हैं

हमको पता है क्या है अंज़ाम होने वाला
फिर भी हमारी नज़रें अब आफ़ताब पर हैं

हम मह्वेख़्वाब को हो क्यूँ नींद से जगाते
सब रोज़गार अपने चलते ही ख़्वाब पर हैं

गोया कभी भी हमने उनको नहीं बुलाया
दिल में हमारे अक़्सर आए जनाब पर हैं

अच्छे गुलाब हैं पर ग़ाफ़िल जी क्या करोगे
उनका भला जो सारे काँटे गुलाब पर हैं

-‘ग़ाफ़िल’

Saturday, September 23, 2017

उस शख़्स पर से तीरे नज़र यूँ फिसल गया

मानिंदे बर्फ़ कोह सा पत्थर पिघल गया
हाँ! शम्स दोपहर था चढ़ा शाम ढल गया

छलने की मेरी बारी थी पर वह छला मुझे
मेरा नसीबे ख़ाम वो यूँ भी बदल गया

मुझको पता नहीं है मगर कुछ तो बात है
जो चाँद आज दिन के उजाले निकल गया

साबुन लगे से जिस्म से फिसला हो जैसे दस्त
उस शख़्स पर से तीरे नज़र यूँ फिसल गया

रुख़ उसका मेरी सू था मगर लुत्फ़ ग़ैर सू
वक़्ते अजल मेरा यूँ कई बार टल गया

कहते हैं लोग वह भी तो शाइर है बाकमाल
क्यूँ मुझको यूँ लगा के वही ज़ह्र उगल गया

ग़ाफ़िल जी आप करते रहे शाइरी उधर
तीरे नज़र रक़ीब का जाना पे चल गया

-‘ग़ाफ़िल’

Friday, September 15, 2017

तो वादाखि़लाफ़ी का फ़न लेके लौटा

बताओ! गया जो भी उल्फ़त के रस्ते
कहाँ वह सुक़ूनो अमन लेके लौटा
अरे!! लौटा भी दिल जो सुह्बत से उनकी
तो वादाखि़लाफ़ी का फ़न लेके लौटा

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, September 13, 2017

आस्तीं का साँप

मैं पाल तो लूँ शौक से इक आस्तीं का साँप
लेकिन यक़ीन तो हो के है ज़ह्र से तिही

-‘ग़ाफ़िल’

Monday, September 11, 2017

पागलों की क्या कमी है आजकल

प्यास की शिद्दत बढ़ी है आजकल
जबके आँखों में नदी है आजकल

मुस्कुराए बिन चले जाते हो तुम
ऐसी भी क्या बेबसी है आजकल

जी नहीं ज़र का फ़क़त है राबिता
किस सिफ़त की दोस्ती है आजकल

आजकल छत पर ही आ जाता है चाँद
इसलिए कुछ ताज़गी है आजकल

शह्र की सड़कें खचाखच हैं भरी
तन्हा फिर भी आदमी है आजकल

तुम उगलते थे जिसे वह ज़ह्र भी
हद से ज्‍़यादा क़ीमती है आजकल

उनका रुत्‍बा, उनकी ख़ुशियाँ उनकी ठीस
और इधर लाचारगी है आजकल

क्यूँ लगे है इस तरह जैसे क़फ़न
ज़िन्दगी भी ओढ़ती है आजकल

कर रहे ग़ाफ़िल जी तुम भी शाइरी
पागलों की क्या कमी है आजकल

-‘ग़ाफ़िल’

Friday, September 08, 2017

दिखा तो है कोई आते हुए

हमारी याद तक आई नहीं उन्हें, फिर भी
अगर वो ख़ुश हैं दिखा तो है कोई आते हुए

-‘ग़ाफ़िल’

Tuesday, September 05, 2017

शर्तिया सोना ख़रा हो जाएगा

रंगो रोगन से सजे इस जिस्म का
इल्म भी क्या है के क्या हो जाएगा
आतिशे उल्फ़त में जल जा तू भी हुस्न
शर्तिया सोना ख़रा हो जाएगा

-‘ग़ाफ़िल’
(चित्र गूगल से साभार)

Friday, September 01, 2017

शबे विसाल

ग़ाफ़िल अब इस शबे विसाल के बाद
भूल जाए न टीस फ़ुर्क़त की

-‘ग़ाफ़िल’
(चित्र गूगल से साभार)