Monday, August 31, 2020
Thursday, August 20, 2020
क्यूँ न आज और ख़्वाब और भी हैं
ज्यूँ हो तुम बेहिज़ाब और भी हैं
मेरे सदके जनाब और भी हैं
तुम न इतराओ इस क़दर तुमको
इल्म हो माहताब और भी हैं
वो मुख़ातिब था तुमसे ठीक है पर
इश्क़ में कामयाब और भी हैं
क्या तुम्हीं ख़्वाबों से हो वाबस्ता
ऐसा है मह्वेख़्वाब और भी हैं
यूँ जो तुम आँखें फेर लेते हो
सोच लो पुरशबाब और भी हैं
शह्र में देखता हूँ मेरे सिवा
यार ख़ानाख़राब और भी हैं
रोज़ बा रोज़ क्यूँ मेरा ग़ाफ़िल
क्यूँ न आज और ख़्वाब और भी हैं
-‘ग़ाफ़िल’
मेरे सदके जनाब और भी हैं
तुम न इतराओ इस क़दर तुमको
इल्म हो माहताब और भी हैं
वो मुख़ातिब था तुमसे ठीक है पर
इश्क़ में कामयाब और भी हैं
क्या तुम्हीं ख़्वाबों से हो वाबस्ता
ऐसा है मह्वेख़्वाब और भी हैं
यूँ जो तुम आँखें फेर लेते हो
सोच लो पुरशबाब और भी हैं
शह्र में देखता हूँ मेरे सिवा
यार ख़ानाख़राब और भी हैं
रोज़ बा रोज़ क्यूँ मेरा ग़ाफ़िल
क्यूँ न आज और ख़्वाब और भी हैं
-‘ग़ाफ़िल’
Wednesday, August 19, 2020
कोई तो साथ निभाने आए
आए कोई भी बहाने आए
कोई फिर मुझको सताने आए
राहे उल्फ़त है कठिन गो फिर भी
कोई तो साथ निभाने आए
आप इक पल से ही ऊबे हो मियाँ!
अपने आगे तो ज़माने आए
शुक्र है ज़ेह्न तो है अपने साथ
वर्ना कितने हैं बनाने आए
काश! ग़ाफ़िल जी वो पा जाएँ आप
हम फ़क़ीरों से जो पाने आए
-‘ग़ाफ़िल’
कोई फिर मुझको सताने आए
राहे उल्फ़त है कठिन गो फिर भी
कोई तो साथ निभाने आए
आप इक पल से ही ऊबे हो मियाँ!
अपने आगे तो ज़माने आए
शुक्र है ज़ेह्न तो है अपने साथ
वर्ना कितने हैं बनाने आए
काश! ग़ाफ़िल जी वो पा जाएँ आप
हम फ़क़ीरों से जो पाने आए
-‘ग़ाफ़िल’
Saturday, August 15, 2020
ये है ग़लत के हमेशा इधर उधर देखो
बुरी हो शै जो भले ही वो मुख़्तसर देखो
किसी भी चीज़ को देखो मगर अगर देखो
गो चार सू हैं नज़ारे नज़र पे काबू हो पर
ये है ग़लत के हमेशा इधर उधर देखो
अब इधर देखोगे क्यूँ हाँ मगर दुआ है मेरी
खिले हों फूल उधर तुम जिधर जिधर देखो
ये आसमान है महफ़ूज़ तुम कहे थे अब
कटे पड़े हैं परिंदों के जो ये पर देखो
न होगा साथ सफ़र में कोई भी ग़ाफ़िल जी
तमाम शह्र तुम्हारा है वैसे गर देखो
-‘ग़ाफ़िल’
किसी भी चीज़ को देखो मगर अगर देखो
गो चार सू हैं नज़ारे नज़र पे काबू हो पर
ये है ग़लत के हमेशा इधर उधर देखो
अब इधर देखोगे क्यूँ हाँ मगर दुआ है मेरी
खिले हों फूल उधर तुम जिधर जिधर देखो
ये आसमान है महफ़ूज़ तुम कहे थे अब
कटे पड़े हैं परिंदों के जो ये पर देखो
न होगा साथ सफ़र में कोई भी ग़ाफ़िल जी
तमाम शह्र तुम्हारा है वैसे गर देखो
-‘ग़ाफ़िल’
Friday, August 14, 2020
Tuesday, August 11, 2020
पुर्ज़ा पुर्ज़ा हो गया
क्या हुई तेरी नज़र तिरछी के क्या क्या हो गया
कोई साँस अटकी कोई दिल पुर्ज़ा पुर्ज़ा हो गया
जी आवारा मेरा कुछ यूँ रह रहा अब मेरे साथ
ये भी सुह्बत में तेरी तेरे ही जैसा हो गया
मैं बहुत ही शाद हूँ और हाँ रक़ीबों का मेरे
जानता हूँ तेरे दिल में आना जाना हो गया
मुझको लगता है के इश्क़ अपना भी बेमानी ही है
देखता हूँ ये भी कितना तेरा मेरा हो गया
टूटते रिश्ते की ग़ाफ़िल फ़िक़्र भी गर हो तो क्यूँ
शह्र में जब मजनूँ वाला अपना रुत्बा हो गया
-‘ग़ाफ़िल’
कोई साँस अटकी कोई दिल पुर्ज़ा पुर्ज़ा हो गया
जी आवारा मेरा कुछ यूँ रह रहा अब मेरे साथ
ये भी सुह्बत में तेरी तेरे ही जैसा हो गया
मैं बहुत ही शाद हूँ और हाँ रक़ीबों का मेरे
जानता हूँ तेरे दिल में आना जाना हो गया
मुझको लगता है के इश्क़ अपना भी बेमानी ही है
देखता हूँ ये भी कितना तेरा मेरा हो गया
टूटते रिश्ते की ग़ाफ़िल फ़िक़्र भी गर हो तो क्यूँ
शह्र में जब मजनूँ वाला अपना रुत्बा हो गया
-‘ग़ाफ़िल’
Thursday, August 06, 2020
फ़साना मेरा मुख़्तसर देखते हो
तुम्हें भी लगेगा अगर देखते हो
हैं क्या क्या ये जो चश्मेतर देखते हो
दिखे भी तो क्यूँ उम्र भर की मुहब्बत
जो कुछ पल का हुस्न उम्र भर देखते हो
है गोया मुक़द्दस न जाने मगर क्यूँ
फ़साना मेरा मुख़्तसर देखते हो
गर इंसान हो तो फ़क़त ख़ामियाँ ही
नहीं देखनी थीं मगर देखते हो
वो चेहरा नहीं चाँद है मेरे ग़ाफ़िल
उसे क्यूँ नहीं भर नज़र देखते हो
-‘ग़ाफ़िल’
हैं क्या क्या ये जो चश्मेतर देखते हो
दिखे भी तो क्यूँ उम्र भर की मुहब्बत
जो कुछ पल का हुस्न उम्र भर देखते हो
है गोया मुक़द्दस न जाने मगर क्यूँ
फ़साना मेरा मुख़्तसर देखते हो
गर इंसान हो तो फ़क़त ख़ामियाँ ही
नहीं देखनी थीं मगर देखते हो
वो चेहरा नहीं चाँद है मेरे ग़ाफ़िल
उसे क्यूँ नहीं भर नज़र देखते हो
-‘ग़ाफ़िल’
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