रहमतों से तुम्हारे पैदा है
वक़्त कोई बुरा नहीं होता
मान जाओ जो यह तो अच्छा है
बुज़्दिलों लड़ तो यूँ रहे जैसे
बस रक़ाबत तुम्हारा पेशा है
कुछ भी सोचा न जड़ दिया तुह्मत
है वो आशिक़ के इक लफंगा है
चोटियों की है नाप ले ली अब
घाटियों में मुझे उतरना है
कब ख़ुदा हो गया पता न चला
संग, मैंने जिसे तराशा है
दिल पे ग़ाफ़िल के वार करते हो
जानकर भी के यह तुम्हारा है
-‘ग़ाफ़िल’