एक ऐसी रचना जो सहज ही रीतिकाल की सैर करा दे-
पीनपयोधर प्रबलतम, तन्वी तन का सार।
तासु तुलन मा जानिए, सुबरन गिरि बेकार॥
सुबरन-गिरि बेकार, सदा सबका भरमावै;
रहै कल्पना मध्य, हाथ तँह पहुँचि न पावै।
'ग़ाफ़िल' नैन निहाल, निरखि कुच रचना सुन्दर;
साहस कर कर बढ़ै, हाथ मँह पीनपयोधर॥
तासु तुलन मा जानिए, सुबरन गिरि बेकार॥
सुबरन-गिरि बेकार, सदा सबका भरमावै;
रहै कल्पना मध्य, हाथ तँह पहुँचि न पावै।
'ग़ाफ़िल' नैन निहाल, निरखि कुच रचना सुन्दर;
साहस कर कर बढ़ै, हाथ मँह पीनपयोधर॥
-ghafil