Monday, September 29, 2014

क्या पता तुझको

अँधेरों से जो हमने दुश्मनी की क्या पता तुझको
कभी दिल को जलाकर रौशनी की क्या पता तुझको
तुझे अब क्‍या पता के किन थपेड़ों को सहा हमने
रहे-उल्फ़त में कैसे चाँदनी की क्या पता तुझको

-‘ग़ाफ़िल’

Wednesday, September 17, 2014

कौन पूछे है भला ग़ाफ़िल को अब इस हाल में

वो तअन्नुद आपका हमसे हमेशा बेवजह,
याद आता है बहुत तुझको गंवा देने के बाद।
कौन पूछे है भला ग़ाफ़िल को अब इस हाल में,
आरज़ू-ए-ख़ाम पे सब कुछ लुटा देने के बाद।।

(तअन्नुद=झगड़ना, लड़ाई, आरज़ू-ए-ख़ाम=वह इच्छा जो कभी पूरी न हो, कच्ची इच्छा)

-‘ग़ाफ़िल’