मुझे है याद क्या क्या जाने जाना छोड़ देना था;
तेरा हर हाल मुझको आज़माना छोड़ देना था।
है छूट उल्फ़त में नज़रों से फ़क़त, पीने पिलाने की;
ज़रीयन दस्त मै पीना पिलाना छोड़ देना था।
हर आशिक़ को ख़ुदा के बंदे का है मर्तबा हासिल;
अरे यह क्या के उसको कह दीवाना छोड़ देना था।
अगर आए कभी आड़े ज़माना इश्क़ में अपने;
अहद यह थी के उस ही दम ज़माना छोड़ देना था।
रक़ीबों की रहन है क्या इसी बाबत भला मुझको;
तेरे दिल के नगर तक आना जाना छोड़ देना था।
ये माना है नया साथी नया रास्ता नयी मंज़िल;
मगर क्या तज़्रिबा अपना पुराना छोड़ देना था।
समझता रब है ख़ुद को उसको तो ग़ाफ़िल बहुत पहले;
भले कितना भी है वो जाना माना, छोड़ देना था।
-‘ग़ाफ़िल’
तेरा हर हाल मुझको आज़माना छोड़ देना था।
है छूट उल्फ़त में नज़रों से फ़क़त, पीने पिलाने की;
ज़रीयन दस्त मै पीना पिलाना छोड़ देना था।
हर आशिक़ को ख़ुदा के बंदे का है मर्तबा हासिल;
अरे यह क्या के उसको कह दीवाना छोड़ देना था।
अगर आए कभी आड़े ज़माना इश्क़ में अपने;
अहद यह थी के उस ही दम ज़माना छोड़ देना था।
रक़ीबों की रहन है क्या इसी बाबत भला मुझको;
तेरे दिल के नगर तक आना जाना छोड़ देना था।
ये माना है नया साथी नया रास्ता नयी मंज़िल;
मगर क्या तज़्रिबा अपना पुराना छोड़ देना था।
समझता रब है ख़ुद को उसको तो ग़ाफ़िल बहुत पहले;
भले कितना भी है वो जाना माना, छोड़ देना था।
-‘ग़ाफ़िल’